GNSS Toll System 2025: भारत में 1 मई से फास्टैग बंद, नया सिस्टम लागू, अब जीएनएसएस से काटा जाएगा टोल 

भारत की सड़क यात्रा एक नए युग में प्रवेश करने जा रही है। 1 मई 2025 से देश में फास्टैग सिस्टम को बंद कर दिया जाएगा और उसकी जगह GNSS यानी ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम आधारित टोल वसूली व्यवस्था लागू होगी।

By Prithavi Raj

Updated on:

12:17 PM

GNSS Toll System 2025: भारत की सड़कों पर 1 मई 2025 से एक नई क्रांति शुरू होने जा रही है। केंद्र सरकार ने फास्टैग सिस्टम को अलविदा कहते हुए ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम को लागू करने का ऐलान किया है। यह नई तकनीक न केवल यात्रा को आसान बनाएगी बल्कि टोल वसूली को और पारदर्शी व निष्पक्ष बनाएगी। अब आप जितनी दूरी तय करेंगे उतना ही टोल चुकाएंगे। 

GNSS टोल सिस्टम एक अत्याधुनिक तकनीक है, जो सैटेलाइट के माध्यम से वाहनों की गतिविधियों को ट्रैक करती है। यह सिस्टम भारत के अपने नेविगेशन सिस्टम NavIC और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) का उपयोग करता है। वाहनों में एक ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) लगाई जाएगी जो सैटेलाइट से जुड़कर यह जानकारी देगी कि वाहन ने हाईवे पर कितनी दूरी तय की। इसके आधार पर टोल की राशि तय होगी और यह राशि आपके लिंक किए गए डिजिटल वॉलेट या बैंक खाते से स्वचालित रूप से कट जाएगी। यह सिस्टम प्रीपेड और पोस्टपेड दोनों विकल्पों में उपलब्ध होगा जिससे यूजर्स को लचीलापन मिलेगा।

फास्टैग से कैसे अलग है GNSS?

फास्टैग ने टोल वसूली को डिजिटल बनाया लेकिन इसमें वाहनों को टोल प्लाजा पर रुकना पड़ता था और कई बार लंबी कतारों का सामना करना पड़ता था। इसके अलावा फास्टैग में एक निश्चित दूरी के लिए फिक्स्ड टोल लिया जाता था, भले ही आपने उससे कम दूरी तय की हो। GNSS सिस्टम इस समस्या को खत्म करता है। यह वास्तविक दूरी के आधार पर टोल वसूलता है, जिससे यात्रियों को केवल उतना ही भुगतान करना पड़ता है जितना उन्होंने हाईवे का उपयोग किया। साथ ही, यह सिस्टम टोल प्लाजा को पूरी तरह खत्म करने की दिशा में एक कदम है, जिससे यात्रा निर्बाध हो जाएगी।

कैसे काम करेगा यह सिस्टम?

GNSS सिस्टम की कार्यप्रणाली बेहद सरल और प्रभावी है। हर वाहन में एक OBU डिवाइस लगाया जाएगा, जो सैटेलाइट के जरिए वाहन की लोकेशन और तय की गई दूरी को रिकॉर्ड करेगा। यह डिवाइस नॉन-ट्रांसफरेबल होगी यानी इसे किसी अन्य वाहन में इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। हाईवे पर वर्चुअल टोल पॉइंट्स या जियो-फेंसिंग के जरिए वाहन के प्रवेश और निकास को ट्रैक किया जाएगा। टोल की गणना होने के बाद यह राशि स्वचालित रूप से आपके खाते से कट जाएगी। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने देश के लगभग सभी हाईवे को जियो-फेंसिंग के लिए तैयार कर लिया है, जो इस सिस्टम की रीढ़ है।

यात्रियों को क्या करना होगा?

अगर आपके पास वाहन है, तो 1 मई 2025 से पहले कुछ जरूरी कदम उठाने होंगे। सबसे पहले, अपने वाहन में सरकार द्वारा अनुमोदित GNSS OBU डिवाइस लगवाएं। यह डिवाइस सरकारी पोर्टल्स या अधिकृत केंद्रों पर उपलब्ध होगी। इसके बाद, अपने बैंक खाते या डिजिटल वॉलेट को इस सिस्टम से लिंक करें। 30 अप्रैल 2025 तक आप अपने मौजूदा फास्टैग का उपयोग कर सकते हैं लेकिन इसके बाद फास्टैग स्टीकर को हटाना होगा। जिन वाहनों में OBU नहीं होगा उन्हें GNSS लेन में प्रवेश करने पर दोगुना टोल देना पड़ सकता है। इसलिए समय रहते इस नई व्यवस्था के लिए तैयार हो जाएं।

यात्रियों को मिलेंगे ये बड़े फायदे

GNSS सिस्टम यात्रियों के लिए कई लाभ लेकर आ रहा है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि अब आपको टोल प्लाजा पर रुकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे न केवल समय बचेगा बल्कि ईंधन की खपत और कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा। दूसरा, आप केवल उतना ही टोल चुकाएंगे जितनी दूरी आपने तय की। उदाहरण के लिए, अगर आप 20 किलोमीटर से कम दूरी तय करते हैं तो आपको कोई टोल नहीं देना होगा। यह नियम हर दिन दोनों दिशाओं में लागू होगा। इसके अलावा, सैटेलाइट आधारित यह सिस्टम मैनुअल त्रुटियों और टोल चोरी को कम करेगा जिससे सिस्टम की पारदर्शिता बढ़ेगी।

शुरुआत में कहां लागू होगा?

GNSS सिस्टम की शुरुआत चरणबद्ध तरीके से होगी। पहले चरण में यह ट्रकों बसों और खतरनाक सामान ले जाने वाले वाहनों पर लागू होगा क्योंकि इनमें पहले से ही व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग (VLT) सिस्टम मौजूद है। 2026-27 तक यह सिस्टम निजी वाहनों तक विस्तारित होगा। शुरुआत में 2,000 किलोमीटर के हाईवे पर यह सिस्टम लागू किया जाएगा जिसे अगले दो सालों में 50,000 किलोमीटर तक बढ़ाने की योजना है। बेंगलुरु मैसूर और पानीपत-हिसार हाईवे पर पहले ही इसकी सफल पायलट टेस्टिंग हो चुकी है।

चुनौतियां और समाधान

हर नई तकनीक के साथ कुछ चुनौतियां भी आती हैं। GNSS सिस्टम में सैटेलाइट सिग्नल की उपलब्धता एक मुद्दा हो सकता है, खासकर सुरंगों या घाटी क्षेत्रों में। इसके अलावा कुछ लोग वाहन ट्रैकिंग को लेकर गोपनीयता की चिंता जता सकते हैं। सरकार ने इन चिंताओं को दूर करने के लिए NavIC का उपयोग करने का फैसला किया है, ताकि डेटा भारत के भीतर ही रहे। साथ ही मजबूत डेटा सुरक्षा उपाय और नियामक अनुपालन सुनिश्चित किए जा रहे हैं।

Prithavi Raj

मैं राजस्थान के सीकर जिले का रहने वाला हूँ और LLB की हुई हैं। वकील होने के साथ-साथ मुझे लोकल न्यूज़ पढ़ना और लिखना काफी पसंद है। मैंने 7 साल से कई बड़े न्यूज़ पोर्टल पर अपना योगदान दिया है।

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