जयपुर। राजस्थान की खाद्य सुरक्षा योजना, जो गरीब और जरूरतमंद परिवारों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने के लिए चलाई जाती है, अब भ्रष्टाचार और घोटालों की चपेट में आ गई है। जयपुर जिले के कई ग्रामीण इलाकों में हजारों क्विंटल गेहूं वितरण से पहले ही गायब हो गया। सबसे अधिक गड़बड़ी फागी, माधोराजपुरा और आसपास के क्षेत्रों में देखी गई, जहां हजारों जरूरतमंद परिवारों को राशन से वंचित रहना पड़ा।
राशन के नाम पर लाखों का घोटाला
सूत्रों के मुताबिक, जनवरी से मार्च के बीच करीब 4,000 क्विंटल गेहूं वितरण से पहले ही हेराफेरी का शिकार हो गया। बाजार मूल्य के हिसाब से देखें तो यह घोटाला एक करोड़ रुपए से अधिक का बताया जा रहा है। राशन दुकानों तक गेहूं पहुंचने से पहले ही इसमें हेरफेर की गई, जिससे जरूरतमंदों को अनाज नहीं मिल पाया। प्रशासन की ओर से इस मामले को दबाने की कोशिश की गई, लेकिन जैसे-जैसे यह मामला सामने आया, वैसे-वैसे सरकार और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे।
गेहूं के गबन की साजिश कैसे रची गई?
खाद्य सुरक्षा योजना के तहत गेहूं राशन की दुकानों पर पहुंचाया जाता है, जहां से लाभार्थी पोस मशीन के जरिए राशन प्राप्त करते हैं। लेकिन इस बार गेहूं स्टोर से सीधे राशन दुकानों तक पहुंचने से पहले ही खुर्द-बुर्द कर दिया गया। यह हेरफेर सिर्फ एक या दो जगहों तक सीमित नहीं थी, बल्कि कई अन्य इलाकों में भी इसी तरह की गड़बड़ियां सामने आई हैं।
हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि कई दुकानों पर राशन कार्डधारकों को गेहूं नहीं मिला। जब उन्होंने इसकी शिकायत की, तो अधिकारियों ने तकनीकी समस्याओं का बहाना बनाकर उन्हें टालने की कोशिश की। सच बात तो यह है कि गेहूं की हेराफेरी पहले ही की जा चुकी थी, और अधिकारी अब इसे छुपाने में लगे हुए हैं।
लाभार्थियों को हो रही परेशानी
गेहूं न मिलने की वजह से हजारों गरीब परिवार दो वक्त की रोटी के लिए परेशान हैं। सरकार द्वारा संचालित इस योजना का उद्देश्य ही गरीबों को राहत देना था, लेकिन इस घोटाले ने पूरी व्यवस्था की पोल खोल दी है। कई स्थानों पर लाभार्थियों को घंटों लाइन में लगने के बावजूद गेहूं नहीं मिल सका, क्योंकि स्टॉक ही खत्म हो चुका था।
सच्चाई छुपाने के प्रयास
जैसे ही मामला उजागर हुआ, अधिकारियों ने इस घोटाले को दबाने की पूरी कोशिश शुरू कर दी। पोस मशीनों की सेटिंग में बदलाव करके दूसरे इलाकों में गेहूं ट्रांसफर कर दिया गया, ताकि आंकड़ों में सब कुछ सामान्य लगे। लेकिन, जब लाभार्थियों ने विरोध करना शुरू किया, तो पूरा मामला धीरे-धीरे बाहर आने लगा।